अपने दिल की बातों को खामोशी के साथ दुनिया के सामने रखने का आसान तरीका तसनीफ है और तसनीफ में हर इंसान अपनी ज़ाती चीज़ को ही बयान करता है और बातें अच्छी हो दुनिया के सामने छप जाता है वरना छुप जाता है । छपने (मक़बूलियत) के लिए ज़रूरी है कि मज़मून उमदा से उमदा हो क्योंकि मज़मून कहते ही हैं किसी मौज़ु पर अपने खयालात को मरबूत और मुदलल्ल अंदाज़ में इस तरह पेश करना कि पढ़ने वाला उसको समझकर मुतासिर हो सके । और जुमलों को देखकर पूरा मज़मून पढ़ने के लिए ज़हनी तौर पर आमादा हो जाए ।
उमदा मज़मून नवेसी के लिए हमारा एदारा दारुल उलूम फैज़ाने मुस्तफा बच्चों पर काफी मेहनत कर रहा है। और एदारा के दारुत्तसनीफ में बच्चों को ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वह एक अच्छा मुसन्निफ़ बन कर दुनिया में मौत के बाद भी ज़िंदा रहे अच्छे नामों से याद किया जा सके।
दारुल उलूम फैज़ाने मुस्तफा के शोअबा दारुत्तसनीफ दुनिया को दे रहा है। बेहतरीन कलमकार (मुसन्निफ़) में आपको बता दूं कि अल्लाह ताला ने क़ुरान पाक में कलम की कसम खाई है और अशिक्षा अव्वलीने तख्लीक में सबसे पहले कलम को तख्लीक किया। कलम की ताक़त से बहुत से लोगों ने अपने आप को मनवाया है। जिन्होंने कलम उठाया जद्दोजहद की वह मुसन्निफ़ बने।
मुसन्निफ़ इस मआशरे के लिए आफताब की मानिंद हैं। मुसन्निफ़ एक ऐसा तबका है जो मआशरे में बर्क़े तजल्ली की हैसियत रखता है।
मुसन्निफ़ का किरदार हमारे मआशरे में बहुत अहमियत का हामिल है । जैसे अंधेरी रात में माहताब रौशनी का सबब बनता है। बिल्कुल इसी तरह मुसन्निफ़ अपने ख्यालात एहसासात से लोगों के नज़रियात को रौशन करने का सबब बनता है। मुसन्निफ़ मआशरे में बसने वाले अफ़राद की ज़हनी सतह को तब्दील कर सकता है। मुसन्निफ़ मआशरे में बहुत से मुसब्बित और मनफी पहलुओं को उजागर करता है। यह नस्लों को संवारने का फरीज़ा अंजाम देता है। मुसन्निफ़ मआशरे में तब्दील लाता है। अपने कलम से हक़ बात लिख के लोगों तक पहुंचाता है। क़ारिईन को अंधेरों से निकाल के रौशनी की किरण मुहय्या करता है।
और हजारों लोग उनके लिखे हुए से फैज़याब होते हैं। तारीख में उनका नाम आज भी ज़िंदा है। मुसन्निफ़ राहनुमा है यह अपने कलम से लोगों के दिलों को फेर देता है। मुसन्निफ़ की शख्सियत सहर अंगेज़ होती है। एक अच्छा मुसन्निफ़ हमेशा ज़िंदा रहता है लोगों के दिलों में, किताबों में मुसन्निफ़ अपनी कौम की तर्जुमानी करता है। यह तपते सहरा में अब्र बारां का काम करता है। नौजवान नस्ल को सीधे रास्ते पे गामेज़न करता है। जैसे ज़ख्मों को मरहम की ज़रूरत होती है। रात को माहताब की ज़रूरत होती है और दिन में आफताब की ज़रूरत होती है। इस तरह मआशरे को एक अच्छे मुसन्निफ़ की ज़रूरत होती है। जो अपने कलम से हक़ लिखे । मुसन्निफ़ का हर लफ्ज़ तिलस्म की मानिंद होता है। जो नई नस्ल में शऊरे जिज़िया पैदा करता है। और उस काम की तरफ हमारा दारुत्तसनीफ रवां दवां है।